किशोरावस्था(Teen age)  क्या  है ?

किशोरावस्था  मे  बच्चों  के  अंदर  होने  वाली  समस्याएं  और  उसका  समाधान।

किशोरावस्था  में  माता-पिता  की,  बच्चों  के  प्रति  जिम्मेदारियां।

किशोरावस्था  पूरे  जीवन  काल  का  सबसे  महत्वपूर्ण  समय  काल  क्यों  ?

किशोरावस्था  के  बच्चों  को  जागरूकता  और  देखभाल  की  सबसे  ज्यादा  जरूरत  क्यों  ?

किशोरावस्था(Teen  age  or  Adolescence  )  की  शुरुआत  लगभग  11  से  12  वर्ष  तक  के  बच्चों  से  हो  जाती  है  और  18  से  19  साल  की  उम्र  तक  रहती  है।  यह  जो  समय  काल  होता  है  8  से  9  साल  का,  यह  बच्चे  के  लिए  पूरे  जीवन  का  सबसे  अहम  समय  काल  होता  है,  ऐसा  मानो  कि  बच्चा  अब  पूर्ण  रूप  से  कच्चा  लोहा  बन  चुका  होता  है, अब  उसको  अलग-अलग  आकार  देने  की  बारी  आ  चुकी  होती  है  और  आगे  चलकर  वह  क्या  रूप  लेने  वाला  है,  यह  बहुत  सारे  कारक(factor)  पर  निर्भर  करता  है,  जिसमें  उसके  मां  बाप  द्वारा  दी  गई  सीख,उसका  सामाजिक  वातावरण(Social environment)  कैसा  है ? जहां  वह  पल  रहा  है, उसकी  स्कूली  शिक्षा  कैसी  हो  रही  है, और  कुछ  हद  तक  उसके  माता-पिता  द्वारा  प्राप्त  कुछ  अनुवांशिक  गुण(Genetic  properties)  पर  निर्भर  करता  है  ।  यह  सभी  उसकी  बढ़ती  उम्र  के  साथ  उसके  समझ  को  बढ़ाने  में  योगदान  करते  हैं।  

लेकिन  जरा  सोचिए!  ऊपर  जो  हमने  सारी  बातें  बताई, क्या  वह  सभी  बच्चों  को  ढंग  से  मिल  पा  रही  हैं?  इसका  उत्तर  होगा  नहीं!  दो-  चार  प्रतिशत  ही  बच्चे  ऐसे  होंगे, जिनको  जागरूक(Aware)  माता  पिता  ,  अच्छा  सामाजिक  वातावरण,  अच्छी  स्कूलिंग  ,एक  साथ  यह  सारी  सुविधाएं  मिल  पाती  हैं।  

आज  मैं  किशोरावस्था  से  जुड़ी  इन्हीं  सारे  विषयों(Topics)  पर  बात  करूंगा । उनकी  समस्याएं  और  उसका  समाधान  दोनों  से  आपको  भली  बात  परिचित  कराऊंगा । आप  कोई  भी  हो  सकते  हो,  किशोरावस्था  का  वह  बच्चा  या  उसके  माता  पिता  या  उस  बच्चे  के  टीचर  या  फिर  समाज  के  एक  जिम्मेदार  नागरिक।

जब  बच्चा  जन्म  लेता  है  तो  उस  समय  उसके  देखभाल  के  लिए  मां  का  कुछ  ज्यादा  ही  महत्व  होता  है,  लेकिन  बच्चा  जब  दोबारा  जन्म  लेता  है, जी  हां  जब  बच्चा  दोबारा  जन्म  लेता  है ! , दरअसल  जब  बच्चा  अपने  किशोरावस्था  में  होता  है  या  यूं  कहे  की  यौवन  की  उम्र(Puberty  age  )  में  आता  है  तो, समझ  लीजिए  उसका  एक  नया  जन्म  ही  होता  है  और  इस  समय  बच्चे  के  देखभाल  की  जरूरत  सबसे  ज्यादा  होती  है और  यहां  पर  उसके  देखभाल  की  जिम्मेदारी  माता  या  पिता  या  फिर  दोनों  मिलकर  बड़े  अच्छे  से  निभा  सकते  हैं।

इस  समय  बच्चों  के  अंदर  जैविक  परिवर्तन(Biological  changes)  होते  हैं।  

बायोलॉजिकल  चेंजेज  क्या  होते  हैं  यहां  से  पढ़ें,

https://en.wikipedia.org/wiki/Adolescence

जैविक  परिवर्तन(Biological  changes)  होने  की  वजह  से  किशोरावस्था  के  बच्चों  पर  पड़ने  वाले  प्रभाव  :इस  उम्र  में  बच्चे  के  अंदर  सबसे  ज्यादा  ऊर्जा(Energy)  होती  है, जिसे  अगर  एक  अच्छी  दिशा  मिलती  चली  जाए  तो  वह  कुछ  भी  कर  सकता  है, लेकिन  हां, यह  कुछ  भी  कर  जाना  नकारात्मक  संदेश  भी  देता  है।

इस  बदलाव  के  कारण  बच्चे  के  अंदर  आमतौर  पर  क्या-क्या  समस्याएं  देखने  को  मिलती  हैं  :

  • बच्चे  का  बहुत  भावनात्मक(Emotional)  रहना

  • बच्चे  का  अपने  आप  में  खोया  -  खोया  सा  रहना  (lost  remains  lost)

  • बच्चे  के  अंदर  बात-बात  पर  चिड़चिड़ापन  (Irritability)  देखने  को  मिलना

  • बच्चे  का  छोटी-छोटी  बातों  पर  बहुत  गुस्सा  करना

  • बड़ों  के  अच्छी  बातों  का  गलत  मतलब  निकालना  

  • पढ़ाई  में  गिरावट  भी  देखने  को  मिल  सकता  है

  • बच्चों  का  विपरीत  लिंग  (Opposite  Sex)  के  प्रति  आकर्षण  (इसे  हम  समस्या  तो  नहीं  कहेंगे, लेकिन  इस  विषय  पर  जागरूकता  की  आज  सबसे  ज्यादा  जरूरत  है, क्योंकि  इस  प्रभाव  को  सब  देखते  हैं,  लेकिन  इस  पर  बात  करने  से  सभी  बचते  हैं, इस  प्राकृतिक  प्रभाव(Natural  Effect)  को  रोकने  या  इससे  बचने  के  बजाय  इसकी  जागरूकता  पर  काम  किया  जाए  तो  शायद  यह, सदी  का  सबसे  बड़ा  बदलाव  होगा।  यह  अपने  आप  में  बहुत  महत्वपूर्ण  और  बड़ा  विषय  है  इसलिए  इसकी  चर्चा  अलग  से, अगले  ब्लॉग  में  करेंगे)।


 यह  सारी  समस्याएं, सभी  बच्चों  के  अंदर  एक  साथ  देखने  को  तो  नहीं  मिलेगी, लेकिन  हां  इन  सामान्य  समस्याओं  में  से  हर  एक  बच्चे  के  अंदर  2-  4  देखने  को  मिल  ही  जाएंगी। ज्यादातर  जो  भारतीय  माता-पिता  है, अगर  उनके  बच्चे  की  तबीयत  खराब  हो  जाए  तो, उसका  इलाज  कराने  में  वे  अपनी  जान  भी  लगा  सकते  हैं, लेकिन  यह  जो  ऊपर  की  समस्याएं  हमने  बताई, वे  उसको  समझ  नहीं  पाते  हैं  और  जब  समझ  नहीं  पाएंगे  तो  समाधान  कैसे  ढूंढेगे ? और  यही  कारण  है  कि  बहुत  सारे  बच्चे  धीरे-धीरे  इन्हीं  समस्याओं  से  जूझते-  जूझते  कब  अपने  मार्ग  से  भटक  जाते  हैं, उन्हें  खुद  पता  भी  नहीं  चल  पाता  है।  

समाधान  :-

इन  सभी  समस्याओं  से,बच्चों  को  निदान(Solution)  चार  अलग-अलग  जगह  पर  मिलेगा।  

  • सबसे  पहली  जिम्मेदारी  बच्चों  के  माता-पिता  की  होगी।  

  • दूसरी  जिम्मेदारी  वह  जिस  स्कूल  में  जा  रहे  हैं  वहां  के  शिक्षकों  की  होगी।

  • तीसरी  जिम्मेदारी  उस  समाज  के  लोगों  की  होगी  ,  जिस  सामाजिक  वातावरण  में  वह  बच्चा  पल  रहा  है।

  •   और  चौथी  जिम्मेदारी  उस  बच्चे  की  खुद  की  होगी।  

यहां  पर  हम  केवल  माता  पिता  की  क्या  जिम्मेदारियां  होनी  चाहिए  उस  पर  बात  करेंगे,  बाकी  लोगों  की  क्या  जिम्मेदारियां  होनी  चाहिए, उस  पर  आगे  आने  वाले  ब्लॉग  में  चर्चा  करेंगे  ।  

माता-पिता(Parents)  की  जिम्मेदारियां  और  समस्याओं  के  समाधान  के  लिए  कुछ  महत्वपूर्ण  सुझाव:

  •   माता-पिता  को  बच्चे  का  सबसे  अच्छा  दोस्त  बन  के  रहना  चाहिए  :  इस  किशोरावस्था  में  माता  या  पिता  या  फिर  दोनों  को  ही  बच्चे  के  बहुत  करीब(Close)  होना  चाहिए,  बिल्कुल  उसके  उस  दोस्त  की  तरह  जिससे  वह  बिना  झिझक  के, बिना  शर्म  के, सारी  बात  साझा(Share)  कर  सके।  बच्चा  आपका  कितना  भी  अच्छे  स्वभाव  का  है, कितना  भी  बुद्धिमान  क्यों  ना  हो,  कभी  भी  उसे  इस  तरह  से  ना  समझे  कि  मेरा  बच्चा  औरों  की  तरह  थोड़ी  ना  है,  आपका  बच्चा  भी  एक  इंसान  है,  हां!  मैंने  माना  कि  आपने  उसे  अभी  तक  बहुत  उच्च  कोटि  के  संस्कार  देते  चले  आए  हैं,  और  आगे  देते  भी  रहेंगे,  लेकिन  उसके  अंदर  भी  जैविक  परिवर्तन(Biological  changes)  हो  रहे  हैं,  उसे  बिल्कुल  अनदेखा  ना  करें  और  बच्चों  के  अंदर  जो  बदलाव  हो  रहे  है, उससे  उन्हें  जागरूक  कराने  की  सबसे  पहली  जिम्मेदारी  आप  की  है,बच्चों  से  खुलकर  बात  ना  करके,  कुछ  चीजें  अनदेखा  करके,  हम  उसके  साथ  बहुत  बड़ा  अन्याय  करते  हैं।

  •   बच्चे  पर  कभी  भावनात्मक  दबाव(Emotionally  pressure)  ना  बनाएं  :बच्चों  पर  कभी  भावनात्मक  दबाव  ना  बनाएं,उसे  हमेशा  उसके  लक्ष्य  की  तरफ  बढ़ने  में  मदद  करें, उससे  संबंधित  जानकारियां  जितना  हो  सके  उसे  उपस्थित  कराएं, अभी  से  उसकी  जिम्मेदारियां  ना  गिनाए,  क्योंकि  अगर  आपका  बच्चा  भावुक  होगा, तो  हो  सकता  है, वह  अपने  लक्ष्य  को  भूलकर  इन  परेशानियों  पर  ध्यान  देने  लगे  जिसका  अभी  से  कोई  मतलब  निकलने  वाला  नहीं  है। हां  प्रोत्साहन  के  तौर  पर  आप  उसे  जरूर  आभास  (realise)  कराते  रहिए  कि  जब  तुम  सफल  हो  जाओगे  तो, हमारी  जो  समस्याएं कैसे  दूर  हो  जाएंगी।

  • अपने  बच्चे  की  दूसरों  बच्चों  से  तुलना  करना  बंद  करें:अपने  बच्चों  की  कभी  दूसरे  के  बच्चों  से  तुलना  मत  करिए  क्योंकि  कोई  बच्चा  कमजोर  नहीं  होता  है  अगर  आप  उसे  बार-बार  कमजोर  महसूस  कराएंगे  तो  एक  दिन  वह  जरूर  कमजोर  हो  जाएगा  हर  बच्चा  अलग  अलग  सोच  के  साथ  बड़ा  हो  रहा  होता  है  और  यह  अलग-अलग  सोच  का  कारण  परिवार  का  वातावरण, आसपास  रह  रहे  लोगों  के  वातावरण, जिस  स्कूल  से  व  शिक्षा  प्राप्त  कर  रहा  है  उसके  वातावरण  का  ही  प्रभाव  होता  है,  उसको  बस  इतना  एहसास  कराते  रहिए  की  उसका  अगला  प्रदर्शन(Performance)  उसके  पिछले  वाले  से  बेहतर  हो  ऐसा  निरंतर  करते  रहने  से  एक  दिन  वह  निश्चित  ही  उस  बच्चे  की  बराबरी(compete)  करेगा  जिसकी  तुलना  आप  उससे  किया  करते  थे। अगर  आप  किसी  लक्ष्य  की  तरफ  उसे  मोड़ना  चाहते  हैं  तो  आप  उस  लक्ष्य  को  उस  पर  थोपे(Impose) ना करें ,कि  तुम्हें  यह  करना  ही  है,  बस  आपको  समय-समय  पर  उससे  संबंधित  जानकारियों  से  उसे  जागरूक  कराते  रहना  है,  अगर  उसे  पसंद  आया  तो  कुछ  दिन  बाद  वह  खुद  ही  उस  लक्ष्य  की  तरफ  आकर्षित  होता  चला  जाएगा।

  

  • बच्चे  को  बच्चा  ही  ना  रहने  दे, उसे  उसकी  उम्र  के  साथ  बढ़ने  की  पूरी  छूट  दे,  इस  किशोरावस्था  में  बच्चे  के  दिमाग  का  विस्तार  सबसे  तेजी  से  हो  रहा  होता  है  उसे  अपने  ज्ञान(Knowledge)  को  बढ़ाने(Explore)  करने  की  पूरी  छूट  दे,  उसे  छोटी-छोटी  परेशानियों  का  सामना  करने  की  पूरी  छूट  दे,  क्योंकि  जब  तक  वह  इन  छोटी-छोटी  परेशानियों  से  रूबरू  नहीं  होगा  उसके  अंदर  उस  परेशानियों  का  सामना  करने  की  क्षमता  विकसित(develop)  नहीं  होगी।

  

  • बच्चों  की  गलत  आदतों  (Bad  habits)  को  सुधारने  का  सबसे  अच्छा  तरीका अगर  आपके  बच्चे  के  अंदर  कुछ  नकारात्मक  बदलाव(Negative  changes)  देखने  को  मिल  रहा  है  या  पहले  से चला रहा  है  तो  आप  उसको  मारने, पीटने  या  समझाने  से  पहले, यह  नकारात्मक  प्रभाव(Negative effect)  उस  पर कहां से  पड़  रहा  है  उस  कारण(Cause)  को  जानने  की  कोशिश  करें,  क्योंकि  बच्चे  को  सीधा(Direct) मना  करके  उसे  नहीं  रोक  सकते  हैं।  वह  आपसे  छुप  -  छुप  कर  वह  करने  की  कोशिश  कर सकता  है,  इसलिए  सबसे  पहले  आप  उस  कारण  का  पता  लगाएं  जो  बच्चे  पर  नकारात्मक  प्रभाव डाल  रहा  है, यह  नकारात्मक  प्रभाव  आपके  परिवार  के  वातावरण  की  वजह  से  हो  सकता  है  या  फिर  उसकी  कुछ  खराब  संगत  होने  की  वजह  से, एक  बार  अगर  आप  कारण  का  पता  लगा  लेत  है  तो  आप  आसानी  से  उसे, उस  कारण  की  मदद  से  समझा  सकते  हैं  कि,  क्या  उसमें गलत  है  और  किस  तरह  से  यह  तुम्हारे  जीवन  में  गलत  प्रभाव  डाल  रहा  है।  किशोरावस्था  तक  बच्चे  के  अंदर  समझ  का  संचार  होना  शुरू  हो  गया  होता  है, अब  आप  उसे  डांट  कर  फटकार  कर  बार-बार  कहकर  चीज  नहीं  सिखा  सकते  हो,बार-बार  बोल  कर  डांट  कर  फटकार  कर  चीजें  तब  सिखाई  जाती  हैं, जहां  पर  समझ  नहीं  होती  है, जैसे  हम  बच्चों  को  उनके  बचपन  में  चीजें  सिखाते  थे, चाहे  वो  बोलने  का  अभ्यास  कराना  हो, चाहे  हिंदी  वर्णमाला  के  अक्षर  सिखाने  हो,  अल्फाबेट  सिखाने  हो,  गिनती  सिखानी  हो, बचपन  में  केवल  एक  ही  तरीका  था  उसकी  बार-बार  प्रैक्टिस  कराई  जाए  अगर  आप  किशोरावस्था  में  बच्चे  को  को  डांट  कर  फटकार  कर  या  बार-बार  कहकर  कुछ  सिखाने  की  कोशिश  करोगे  तो  बच्चे  पर  उसका  नकारात्मक  प्रभाव  पड़  सकता  है।  आप  अपने  बच्चों  को  तभी  सही  समझ  दे  सकते  हैं, सही  दिशा  दे  सकते  हैं  ,जब  आप  उसको  समय  देंगे  आप  उसको  समझेंगे।

  • जागरूकता(awareness):   पढ़ाई  के  साथ  बच्चों  को  जागरूकता  की  बहुत  जरूरत  है  क्योंकि  एक  छोटी  सी  गलती  बच्चे  के  पढ़ाई  पर  बहुत  बड़ा  प्रभाव  डाल  सकती  है, उसके  बढ़ती  उम्र  के  साथ  उसकी  बढ़ती  समझदारी  मे  नकारात्मक  विचार  जोड़  सकती, उसके  नजरिए  (Mind  set)  को बदल  सकती  है।  इसका  प्रभाव  बहुत  धीरे-धीरे  होता  है, कब  बच्चा  बिल्कुल  बदल  जाता  है, ना  तो  बच्चे को  पता  चल  पाता  है  और  ना  ही  उसके  मां-बाप  को।  हमें  अक्सर  सुनने  में  आता  है  कि  बच्चा  बहुत  अच्छा  पढ़ने  में  था  लेकिन  आज  उसकी  स्थिति  ठीक  नहीं  है,  यह  सब  केवल  जागरूकता  की  कमी(Lack  of  awareness  )  के  कारण  होता  है, क्या  गलत  है  क्या  सही  है  इनको  सीखने  का  दो  ही  तरीका  होता  है  पहला  दूसरों  को  अनुसरण(Observe)  करके  दूसरा  खुद  प्रयोग(Experiment)  करके,  लेकिन  दूसरों  से  ना  के  बराबर  ही  बच्चे  सीखते  हैं, खुद  प्रयोग  करना  ज्यादा  पसंद  करते  हैं।  यह  अच्छी  बात  भी  है, खुद  कुछ  करने  की  छूट  बच्चों  को  देनी  चाहिए,  यह  बच्चों  को  मजबूत  बनाता  है,  लेकिन  उसके  साथ  कुछ  ज्यादा  गलत  होने  लगे  तो, वह  उसमें  डूबे  ना, उससे  बाहर  आ  सके, इसके  लिए  उसे  जागरूक  होना  बहुत  जरूरी  है।

इस  ब्लॉग  को  शुरू  करने  का  उद्देश्य  ही  मेरा  यही  है,  किशोरावस्था  में  बच्चों  के  अंदर  किस  तरह  की  जागरूकता  की  जरूरत  है,  उससे  संबंधित  सारे  विषयों  से  उन्हें  जागरूक  कराया  जाए।  बच्चे  के  लिए  यह  समय  स्वर्णकाल(Golden  Period)  का  होता।  अगर  बच्चा  इस  अवस्था  को  सही  तरीके  से  जी  लिया  तो  आगे  की  जिंदगी, जो युवा अवस्था(Young age) की है उसे आसानी से,आनंद(Enjoy) के साथ, एक अच्छी समझ(Understanding) के साथ जिएगा,याद  रखिए! जागरूकता(Awareness)  ही  किसी  भी  समस्या(problem)  का  एकमात्र  स्थाई(Permanent)  समाधान(Solution)  है। इसमें  मुझे  आप  सबका  साथ  चाहिए।

कृपया  इस  विचार  को  अपने  हर  जानने  वाले  तक  पहुंचाएं। इसे  आप  हमारे  यूट्यूब  चैनल https://www.youtube.com/watch?v=ovbf8hunkww पर  सुन  भी  सकते  हैं।


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